देहरादून : प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग यूँ तो दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है एक के बाद एक आपदा में बेहतरीन कार्यों और जन सेवा में महकमा पूरी शिद्दत से लगा है, थराली आपदा से लेकर धराली आपदा तक विभाग के द्वारा सराहनीय कार्य किए है, जिससे हर तरफ़ विभाग की सराहना हुई लेकिन इसके बाद अब विभागीय विभाषणों के करामात के चलते स्वास्थ्य महकमा एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है — इस बार वजह किसी बाहरी आलोचना या उपकरणों की खरीद से जुड़ा विवाद नहीं, बल्कि विभाग के भीतर बैठे “विभीषण” हैं, जो गोपनीय सूचनाएं बाहर लीक कर रहे हैं। विभाग के आला अधिकारियों को मिले इनपुट से यह स्पष्ट हो गया है कि अंदर ही अंदर कुछ कर्मचारी ऐसे हैं जो राजनीतिक दलों को गलत और भ्रामक सूचनाएं मुहैया करा रहे हैं। इन सूचनाओं के आधार पर हाल ही में एक राजनीतिक दल ने स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर आरोप लगाए, जिससे विभाग की छवि को नुकसान पहुंचा है।
दरअसल, बीते रोज एक प्रमुख राजनीतिक दल ने प्रेस वार्ता कर स्वास्थ्य विभाग पर मशीनों की खरीद में गड़बड़ियों के आरोप लगाए थे। दल ने दावा किया कि करोड़ों रुपये की लागत से खरीदी गई सीटी स्कैन मशीनें महीनों से बंद पड़ी हैं और जनता को उनका लाभ नहीं मिल रहा। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं हुई हैं।
लेकिन विभाग के उच्च अधिकारियों ने इन दावों को पूरी तरह भ्रामक बताया है। अधिकारियों का कहना है कि जिन सीटी स्कैन मशीनों को लेकर आरोप लगाए गए, वे हाल ही में चंपावत और ऋषिकेश में स्थापित की गई हैं और फिलहाल सुचारू रूप से काम कर रही हैं। इन मशीनों के माध्यम से प्रतिदिन दर्जनों मरीजों की जांच की जा रही है, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं बेहतर हुई हैं।
आला अधिकारियों के अनुसार, राजनीतिक दलों तक जो “भ्रामक इनपुट” पहुंचे, वे विभाग के अंदर से ही पहुंचाए गए हैं। जांच में यह तथ्य सामने आया है कि कर्मचारी, जिन्हें हाल ही में विभागीय फेरबदल के तहत अन्य जिम्मेदारी दी गई थी वह कुर्सी पर जमे रहेंगे के लिए इस तरह की सूचनाएं बाहर भेज रहे हैं। जबकि उच्च स्तर से विभाग के स्टोर अनुभाग की जाँच भी गतिमान है जिससे लापरवाही करने वाले मुलाजिमों की हरकतों का खुलासा हो सके।
सूत्रों के अनुसार, अब तक चार कर्मचारियों के नामों की पुष्टि हो चुकी है, जिन्होंने विभागीय दस्तावेजों और आंतरिक चर्चाओं की जानकारी बाहर पहुंचाई। अधिकारियों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि “कर्मचारी को हाल ही में स्टोर और खरीद प्रक्रिया से संबंधित जिम्मेदारी से हटाया गया था। इसके बाद से ही वे बौखलाए हुए है और भ्रामक सूचनाएं लीक कर रहे थे।”
स्वास्थ्य विभाग ने अब इस पूरे मामले की आंतरिक जांच शुरू कर दी है। सूत्र बताते हैं कि सूचना लीक करने वाले कर्मचारियों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और डिजिटल ट्रैकिंग भी कराई जा रही है ताकि यह पता चल सके कि वे किन लोगों के संपर्क में थे और कब जानकारी बाहर पहुंचाई गई।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “यह केवल गोपनीयता भंग का मामला नहीं है, बल्कि यह विभाग की साख पर चोट करने की साजिश है। हम इस मामले में किसी भी कर्मचारी को बख्शने के मूड में नहीं हैं। जिनके नाम आए हैं, उन पर बहुत जल्द सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी।” अधिकारियों का यह भी कहना है कि कुछ कर्मचारी राजनीतिक दलों को बिना तथ्यों की पुष्टि किए विभाग की जानकारी लीक कर रहे हैं। उनका उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ उठाना और जनता के बीच भ्रम फैलाना है। “अगर किसी मशीन या उपकरण में तकनीकी समस्या आती है, तो उसे ठीक करना हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन उसे भ्रष्टाचार से जोड़कर पेश करना गलत है,” बीते कुछ महीनों में स्वास्थ्य विभाग कई परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रहा है — खासकर सीमांत जिलों में सीटी स्कैन, एमआरआई और लैब सुविधाएं बढ़ाने पर। लेकिन अंदरूनी सूचनाएं बाहर जाने से विभाग की साख को नुकसान पहुंचा है।
अधिकारियों का कहना है कि अब विभागीय गोपनीयता बनाए रखने के लिए नए सुरक्षा प्रोटोकॉल भी लागू किए जाएंगे, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों। देहरादून से लेकर चंपावत तक फैले इस विवाद ने साफ कर दिया है कि विभाग के भीतर बैठे कुछ कर्मचारी अपने निजी स्वार्थों के लिए सिस्टम को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग दोनों अब इस पर सख्त रुख अपनाने के मूड में हैं। फिलहाल जांच जारी है, लेकिन इतना तय है कि उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के “विभीषणों” पर अब गाज गिरनी तय है।